श्रीकृष्ण-उद्धव संवाद
भक्ति, ज्ञान, कर्म, ध्यान, योग, धारणा आदि सिद्धान्तों का सार सर्वस्व श्रीकृष्ण-उद्धव संवाद है । श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध में श्रीकृष्ण और उद्धव के मध्य की यह अन्तिम चर्चा है । प्रत्येक कोटि के प्राय: सभी साधकों के समस्त प्रश्नों का उत्तर इस दिव्य संवाद में मिल जाता है ।
धर्मो मद्भक्तिकृत् प्रोक्तो ज्ञानं चैकात्म्यदर्शनम् । गुणेष्वसङ्गो वैराग्यमैश्वर्यं चाणिमादय: ।। (श्रीमद्भागवत ११/१९/२७ )
dharmo madbhaktikṛt prokto jñānaṃ caikātmyadarśanam । guṇeṣvasaṅgo vairāgyamaiśvaryaṃ cāṇimādaya: ।। (śrīmadbhāgavata 11/19/27 )

उद्धव और श्रीकृष्ण का संवाद जीवात्मा-परमात्मा के संवाद जैसा ही समझना चाहिये, जिसमें उद्धव जीवात्मा और परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा ही हैं ।
उद्धव जी ने क्रमश: तीन गुरुओं देवगुरु वृहस्पति, व्रज गोपिकाओं तथा भगवान् श्रीकृष्ण से ज्ञानार्जन किया है । देवगुरु वृहस्पति से इन्होंने शिक्षा व दीक्षा दोनों प्राप्त की हैं तथा शेष दोनों इनके शिक्षा गुरु हैं ।
वेद के तीन सिद्धान्त होते हैं, जिन्हें वेदत्रयी सिद्धान्त कहा जाता है – ज्ञान, भक्ति और कर्म ।
“गुरु बिनु होइ कि ज्ञान” के सिद्धान्त के आधार पर देवगुरु वृहस्पति से इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, गोपियों से माधुर्य कोटि की भक्ति तथा भगवान् श्रीकृष्ण से सभी शिक्षाओं की पुनरावृत्ति के साथ विशेष रूप से कर्म की शिक्षा प्राप्त हुआ । तदोपरान्त भगवान् श्रीकृष्ण उद्धव जी को बद्रीनाथ जाने की आज्ञा देते हैं, जो भारतवर्ष में भगवदीय दिव्य चेतना का मूल केन्द्र स्थान है ।
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