श्रीमद्भागवत है क्या ?

"पुराण" का अर्थ है - जो प्राचीन होते हुए भी नवीन बना हुआ है - “पुरा अपि नवं इति प्रमाणम्” पुराण में ५ लक्षण होते हैं । परन्तु; श्रीमद्भागवत पुराण नहीं, अपितु; महापुराण है, जो सर्गादि १० लक्षणों से युक्त है तथा सभी पुराणों का सम्राट है । गायत्री का महाभाष्य, जिसमें वृत्रासुर के वध की कथा है ।

निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुखमुखादमृतद्रवसंयुतम् ।
पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरहो रसिका भुवि भावुकाः ।।
( श्रीमद्भागवत १/१/३ )

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यत्राधिक्षुत्र गायत्रीं वर्ण्यते धर्म विस्तर: ।
वृत्रासुर वधोपेतं तदवै भागवतं विदुः ।।

जीवन जीने की एक अद्धभुत शैली को बताते हुए यह महापुराण वैष्णवों का मुकुटमणि बना है । भगवान् श्रीकृष्ण का शब्दमय विग्रह, आध्यात्मिक रस की अलौकिक प्याऊ, असंतोष जीवन को शान्ति प्रदान करने वाला दिव्य अमृत रस, या यों कहिये नर को नारायण बनाने वाली दिव्य चेतना है श्रीमद्भागवत महापुराण । इसमें १२ स्कन्ध, ३३५ अध्याय एवं २८००० श्लोक हैं ।

इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं । ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह महान ग्रन्थ है । श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान् नारायण के अवतारों का ही वर्णन है । नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने इस पुराण के माध्यम से श्रीकृष्ण के चौबीस अवतारों की कथा कही है । श्रीमद्भागवत महापुराण में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है ।

श्रीमद्भागवत
हमें क्या देती है ?

इसके पठन एवं श्रवण से भोग और मोक्ष तो सुलभ हो ही जाते हैं । कहाँ तक कहें भगवान के चरणकमलों की अविचल भक्ति भी सहज प्राप्त हो जाती है । मन की शुद्धि के लिए इससे बड़ा कोई अन्य साधन नहीं है । सिंह की गर्जना सुनकर जैसे भेड़िए भाग जाते हैं, वैसे ही भागवत के पाठ से कलियुग के समस्त दोष नष्ट हो जाते हैं । इसके श्रवण मात्र से हरि हृदय में आ विराजते हैं।

श्रीकृष्ण और श्रीमद्भागवत का एकत्त्व

कथा: एक बार भगवान् श्रीकृष्ण के सखा उद्धवजी, श्री कृष्ण से एक प्रश्न करते हुए कहते हैं कि हे श्रीकृष्ण! जब आप सदेह अपने धाम चले जायेंगे, तब आपके भक्त इस धरती पर कैसे रहेंगे ? वे किसकी उपासना करेंगे ? भगवान् कहते हैं-निर्गुण की उपासना । तब उद्धव कहते हैं भगवान् निर्गुण की उपासना में बहुत कष्ट है, अत: हे भगवन् ! इस विषय में भली प्रकार से आप विचार करें ।

स्वधाम गमन के समय भगवान् श्रीकृष्ण, उद्धव की बात का स्मरण करते हैं और अपने दिव्य देह के तेज़ को श्रीमद्भागवत महापुराण के ग्रन्थ में प्रवेश कर प्रतिष्ठित कर देते हैं और उसी दिन से श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान् श्री कृष्ण का ही शरीर माना जाता है ।
स्वकीयं यद्भवेत्तेजसतच्च भागवतेदधात् ।
तिरोधाय प्रविष्टोऽयं श्रीमद्भागवतार्णवम् ॥
( पद्मपुराणान्तर्गत श्रीमद्भागवत माहात्म्य ०३/६१ )

mahapuran

श्री भागवत भगवान् तुम, श्रीकृष्ण के अवतार हो ।
श्रुति-वेदशास्त्र-पुराण तरु के, सुखद फल रस सार हो ।
जो भगवत नित पढ़ै, उसको ह्रदय भाव अपार हो ।
श्रीकृष्ण के दर्शन मिलें, अरु भाव से बेडा पार हो ।।

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