नवग्रह क्या है ?

प्राणी मात्र के ऊपर ग्रहों का अपना एक विशेष प्रभाव होता हैं । ग्रहों का अर्थ होता है - “गृह्णातिफलदातृत्वेनजीवानिति” अर्थात् अपनी गतिविधियों को जो ग्रहण करते हुए चले अथवा प्राणिमात्रों को उनके कर्मों का फल देने के लिए जो ग्रहण करें, वे ग्रह कहलाते हैं ।

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥

Lōkābhirāmaṁ raṇaraṅgadhīraṁ rājīvanētraṁ raghuvanśanātham.
Kāruṇyarūpaṁ karuṇākaraṁ taṁ śrīrāmacandraṁ śaraṇaṁ prapadyē.

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ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार ग्रहों की दशा, ग्रहों की चाल का प्रभाव सभी प्राणियों पर पड़ता हैं । जातक की कुंडली में नवोंग्रहों की दशा का वर्णन होता है । हमारे सौर मण्डल में नवग्रह अर्थात् सूर्य, चन्द्रमा, मङ्गल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु माने गयें हैं । जबकि राहु और केतु को आधुनिक विज्ञान ग्रह नहीं मानता, लेकिन ज्योतिषशास्त्र इन्हें बहुत प्रभावी ग्रह मानता है । इन नौ ग्रहों की पूजा करके इनसे वांछित फल की प्राप्ति की जा सकती है ।  हमारे जीवन में जो भी अच्छा या बुरा हो रहा है उसके पीछे ग्रहों की चाल होती है । क्रोधित ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए ‘नवग्रहों’ की पूजा का विधान है । मंत्रोच्चारण के जरिए इन ग्रहों को साधा जाता है ।

नवग्रह का प्रभाव

जीवन का सम्पूर्ण सुख-दु:ख, हानि-लाभ, जय-पराजय आदि नवग्रहों पर आधारित है । इसका कारण २७ नक्षत्रों और १२ राशियों पर ये ग्रह सतत भ्रमण करते रहते हैं, जिससे ऋतुएँ, वर्ष, मास और दिन-रात बनते हैं ।  ग्रहों की अनुकूल परिस्थिति होने पर सुख एवं प्रतिकूल परिस्थिति होने पर मनुष्य दु:खादि ताप प्राप्त करता है । प्रतिकूलता व अनुकूलता में ग्रह हमें सतर्क करते हैं तथा प्रतिकूल ग्रह अशुभ समय के तथा अनुकूल ग्रह शुभ समय के सूचक होते हैं । अनुकूलता में ग्रह लाभ-प्रदान करते हैं । इनमें भी कौन ग्रह कितने अंश का है, इस पर भी विशेष ध्यान देना चाहिये । कोई अनुकूल ग्रह यदि कम अंश में है तो उसके प्रभाव को बढ़ाने का तथा प्रतिकूल ग्रह के प्रभाव को कम करने का उपाय करना चाहिये । कुछ पापग्रह तो कुछ पुण्य ग्रह हैं । अनुकूल व प्रतिकूल ग्रह की दशा-अन्तर्दशा में उस ग्रह से उत्पन्न प्रभाव से बचना चाहिये तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ उपाय करना अथवा करवाना चाहिये।

नवग्रह के उपाय

शुभ ग्रह के अंश कम होने पर उन्हें मज़बूत करने के लिए नग आदि धारण करने पर विशेष फल देते हैं तथा पापग्रह को शान्त करने हेतु उनका जप ही श्रेष्ठ बताया गया है । जिसमें वैदिक, तांत्रिक तथा वैदिक-तांत्रिक मिश्रित मंत्र शास्त्रों में उपलब्ध हैं । जिनके प्रयोग से विशेष, विशेषतर तथा विशेषतम लाभ प्राप्त होता है । साथ ही इसमें अनेक ऐसे प्रयोग हैं, जिनके द्वारा प्रतिकूल ( अशुभ ) व अनुकूल ( शुभ ) ग्रहदशा के प्रभाव को न्यून तथा अतिरिक्त वृद्धि को प्रदान किया जा सकता है ।

नवग्रह पूजा के लिए आप वैदिक यात्रा गुरुकुल परिवार में संपर्क कर सकते हैं । यहाँ की पूजा पद्धति में शास्त्रों की मर्यादा का ध्यान रखते हुए विधिपूर्वक कर्म किया जाता है, जिससे कल्याणकारी फल की प्राप्ति होती है ।

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