पुरुषार्थ और परोपकार के मार्ग पर चलें

पुरुषार्थ और परोपकार के मार्ग पर चलें

समुद्र को कामना नहीं होती फिर भी अनेक नदियां उसमें आकर मिलती हैं । इसी प्रकार उद्योगी पुरुषों के पास लक्ष्मी सदैव रहती हैं । अर्थात् जो व्यक्ति उद्योगी है, मेहनती है, पुरुषार्थ करता है उन्हें धन का अभाव कभी नहीं होता । कहा भी गया है ‘उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनौरथैः । नहि सुप्तस्य सिहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा’ ।

अर्थात् परिश्रम करने से ही कार्यों में सिद्धि मिलती है । सोचने मात्र से कार्य पूरा नहीं होता, जैसे सोए हुए सिंह के मुंह में मृगा ( हिरन )स्वयं प्रवेश नहीं कर जाएगा । उसके लिए सिंह को उद्यम करना पड़ेगा, शिकार करना ही पड़ेगा । लक्ष्मी और परिश्रम के बारे में भी एक कहावत प्रचलित है “पुरुष सिंह जे उद्यमी, लक्ष्मी ताकर चेर ।” मतलब जो पुरुष उद्यमी है, परिश्रमी है लक्ष्मी उसकी दासी है अर्थात् हमेशा उसी के पास रहती है । ( ऋग्वेद ६/१९/५ )

दूसरों की सेवा करना संसार में सबसे पवित्र और सुंदर कार्य है- “सेवा परमो धर्मः” । धर्म का मुख्य अङ्ग सामूहिकता की भावना है । मिलजुल कर काम करने और दूसरों की सहायता करने के स्वभाव ने ही शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति, विज्ञान, व्यापार, शिल्प आदि क्षेत्रों में मनुष्य को प्रगति के उच्चतम सोपान तक पहुंचाया है ।

समाज में उत्थान के कार्यों के लिए अपनी क्षमता, प्रतिभा का उपयोग करना, दीन-दुःखी, रोगी, असहाय व्यक्तियों की सहायता करना, सत्कार्यो और सत्प्रयासों में लगे समाजसेवी संस्थाओं को दान देना हमारा धर्म है । कुछ लोग सोचते हैं कि दान देने से हमारी आर्थिक हानि होती है लेकिन सत्य तो यह है कि दूसरों की भलाई में धन व्यय करने से कई गुना बढ़ कर हमें मिलता है । जैसे बीज जमीन में डाला जाता है वह बरबाद नहीं होता बल्कि एक दाने में बदले में अनेक दाने मिलते हैं । दान देना पैसा फेंकना नहीं है वरन पैसा बोना है । ऋतु वसंत याचक हुआ, हरष दिया द्रुम पात । ताते नव पल्लव भया, दिया व्यर्थ नहीं जाए । शास्त्रों में भी निर्देश है कि “सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों से बांटो । दूसरों की सहायता करने वाला कभी दीन-दुःखी नहीं रहता है । मनुष्य को चाहिए कि वह कभी भी उद्योग और पुरुषार्थ में आलस्य न करें । मेहनत और ईमानदारी में कमाए और अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए, कुछ धन परोपकार के कार्यों में खर्च करें ।

समुद्र के पास अथाह जल राशि है और वह उसे अपने उपयोग में नहीं लाता है । सूर्य के सहयोग से भाप बनकर बादलों को दे देता है कि जाओ संसार की प्यास बुझाओ । अपना कोई स्वार्थ नहीं, कोई इच्छा नहीं, कोई कामना नहीं । पर उसके पास जल की कमी क्या कभी होती है ? नहीं असंख्य नदियां हर समय उसको जल से भरती रहती हैं । इसी प्रकार पुरुषार्थ और परोपकार में लगे व्यक्ति को कभी धन का अभाव नहीं रहता है । उस व्यक्ति को हर तरफ से सहयोग मिलता है । जब परोपकार की महत्वाकांक्षा मन में जागृत होती है, इससे आपका जीवन उन्नत हो जाता है । दीनता का भाव नष्ट होता है । दुःख दूर होता है, शरीर में शक्ति का नव संचार होता है । मन की चञ्चलता दूर होती है आपके उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा ।


अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग जब परोपकार के कार्यों में किया जाता है तो परमात्मा की कृपा स्वतः बरसने लगती है । आत्मोन्नति के रास्ते में आने वाली बाधाएं स्वतः दूर होने लगती हैं और जीवन के लक्ष्य तक पहुंचना सरल हो जाता है । सभी मनुष्य को पुरुषार्थ और परोपकार के मार्ग पर चलना चाहिए ।

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Vaidik Sutra