निर्भय और निष्पक्ष होकर धर्म का पालन करें

निर्भय और निष्पक्ष होकर धर्म का पालन करें

मनुष्य का बाहर मन और अन्तर्मन शुद्ध होना चाहिए । धर्म से कमाये हुए धन से किया गया परोपकार फलदायी होता है । रिश्वत लेना, बेइमानी, बलपूर्वक छीना गया धन व्यक्ति के परिवार को नष्ट कर देता है । ( ऋग्वेद ७-५६-१२ )

धर्म संसार का आधार है । धर्म के अनुरुप ही मानव को आचरण करना चाहिए । विषम परिस्थितियों में भी धर्म ही मनुष्य की सहयता करता है । विश्व से धर्म समाप्त हो जाएगा तो लोगों की मुश्किलें बढ़ती जायेंगी । सभी सुख-चैन नष्ट हो जाएगें । आज समाज में अधर्म का बोलबाला है, अपने स्वार्थ के आगे लोग धर्म को भूलते जा रहे हैं । लोभ, मोह की पट्टी अधिकांश लोगों के आंखों पर बंधी है ।

धर्म काफी महत्वपूर्ण और सुदृढ़ है, कुछ स्वार्थी तथा धन के लोभी व्यक्ति धर्म की आड़ में लोगों को मूर्ख बनाकर अपना साम्राज्य खड़ा कर रहे हैं । कुछ लोग धर्म को बहुत महत्व देते हैं, इसके लिए हर प्रकार का त्याग और बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं ।राजा हरिश्चन्द्र, बलि, दधिची, मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम तथा अन्य महापुरुषों ने धर्म की रक्षा के लिए बहुत त्याग और बलिदान दिया ।

इस समय समाज में अनेक व्यक्ति, लाल-पिले कपड़े पहनकर, तिलक-चन्दन लगाकर धर्मगुरु बनने का ढोंग रचाते हैं और लोगोंं की धार्मिक भावनाओं का शोषण करते नजर आते हैं । बहुत सारी नकली धार्मिक संस्थाएं चल रही हैं । वहां अनीतिपूर्वक एकत्र किये गये धन से अनेक दुराचार किये जाते हैं । मनुष्य के जीवन का आधार सुचितापूर्ण धर्म के आधार पर होना चाहिए ।

दान-पुण्य, धार्मिक कर्मकाण्ड धर्म के साधन हैं । कर्तव्य पालन, दूसरों की सेवा, परोपकार, सच्चाई और संयम ही धर्म है । जो इन तत्वों को अपने विचार और आचरण में स्थान देता है वहीं सच्चा धर्मात्मा होता है । जीवन की सफलता तभी है जब धर्म हमारे स्वभाव में आत्मसात हो जाए । हमारी सोच और हमारे कर्म, दोनों धर्मानुकूल होंं । दूसरों की अधर्म की कमाई देखकर अपनी नीयत नहीं बिगड़े । कोई भी बुद्धिमान और दूरदर्शी व्यक्ति अधर्म की राह पर नहीं चलता है ।

धर्म-अधर्म का निर्णय करने के लिए मनुष्य के पास बुद्धि है । कम पढ़े लिखे लोग भी अपनी बुद्धि से धर्म के रास्ते पर चलते हैं । मानव को अपनी सद्बुद्धि से निर्भय और निष्पक्ष होकर धर्म का पालन करना चाहिए ।

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Vaidik Sutra