अनेक रूपों में व्याप्त ईश्वर एक है

अनेक रूपों में व्याप्त ईश्वर एक है

परमात्मा की विभिन्न शक्तियां ही अनेक देवताओं के नाम से जानी जाती है लेकिन वह एक ही है । ( ऋग्वेद १/१६४/४६ )

परमपिता परमेश्वर सर्वत्र व्याप्त है । यह विशाल संसार, अंतरिक्ष, कोटि-कोटि ब्रह्मांड, इन सबके कण-कण में ईश्वर की असीम सत्ता विद्यमान है । वही इस सबका नियंता है, नियामक है । “ईशा वास्योमिंद सर्वम”- हर वस्तु में, जड़-चेतन में, हमारे रोम-रोम नें ईश्वर का वास है । वह निराकार परमेश्वर दिखाई नहीं देता परन्तु; वह हमारी प्राणशक्ति है । सोते-जागते हर समय वह हमारे साथ साथ रहता है, हमारे भीतर ही रहता है, बाहर भी और चारोंं ओर फिर भी वह हमें दिखाई नहीं देता है । जैसे दूध में घी छिपा होता है, उसी प्रकार ईश्वर भी सर्व व्यापक है । संसार के कोने-कोने में, सभी जीव-जन्तुओं में, पशु-पक्षियों में, सभी प्राणियों के रोम-रोम में उस परमेश्वर की सत्ता विद्यमान है । उसके लिए जाती-पाति का, पूरब-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण का कोई झगड़ा नहीं है, उसके लिए तो सभी एक समान हैं ।

इस सर्वव्यापक परमेश्वर की असीम शक्तियां हैं जिन्हें संसार के विभिन्न मतावलम्बी भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं । सभी मनुष्य का परमपिता परमेश्वर एक है । वही इन्द्र, वरुण, अग्नि, यम सब कुछ है । उसे चाहे राम कहो या कृष्ण, दुर्गा कहो या काली, शिव कहो या शंकर, अल्लाह कहो या गॉड । नाम का नहीं ईश्वर के गुणों का महत्व है । उन गुणों को अपने जीवन में उतारने, उनके अनुसार आचरण करने और जीवन में व्यवहार करने को ही परमात्मा की उपासना करना कहते हैं । इस प्रकार उपासना करने से, बार-बार के अभ्यास से वे गुण-मनुष्य के स्वभाव के अंग बन जाते हैं, वह उत्तोरत्तर श्रेष्ठता की और बढ़ने लगता है ।

परमात्मा के अलग-अलग नामों को लेकर झगड़ा करना मूर्खता हैं । “एक सदविप्रा बहुधा वदन्ति” एक ही परमेश्वर को लोग अलग-अलग नामों से पुकारते हैं । आप उसे किसी भी नाम से पुकारें, परन्तु; उसके गुणों को अपने स्वभाव का अभिन्न अंग बनायेंं ।

अधिकांश लोग समझते हैं कि हम अनुचित कार्य कर रहे हैं, कोई नहीं देखता है । कोई देखे या न देखे, लेकिन सर्वव्यापक ईश्वर उनके रूपों में सर्वत्र विद्यमान है, वह हर समय हमारे साथ है, उसकी सार्वभौम सत्ता है । सर्वत्र व्याप्त परमात्मा ईश्वर एक ही है उसके नाम और गुणों का चिन्तन करते हुए उसके बताए हुए मार्ग पर चलें ।

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Vaidik Sutra