तन शुद्ध और मन प्रसन्न रहता है – स्नान से ‘

तन शुद्ध और मन प्रसन्न रहता है – स्नान से ‘

स्नान’ शब्द प्रक्रियात्मक है । यह शब्द धोना, मार्जन करना, पानी में डुबकी लगाना आदि अर्थ धारण करता है । नित्य स्नान करने से शरीर स्वच्छ और मन प्रसन्न रहता है । प्रातःकाल जल से स्नान करना एक बाह्य क्रिया और स्थूल क्रिया है । इसे शरीर की शुद्धि के लिए अपनाया जाता है ।

धूप में बैठकर सूर्य की किरणों से शरीर को तपाने की क्रिया को भी विकसित जगत में “धूप-स्नान” करना कहा गया है । प्राचीनकाल से स्नान क्रिया को नित्य जीवन में अपनाया है । “जल-स्नान” क्रिया का उद्देश्य शरीर एवं मन को विकार रहित बनाना है । देह या शरीर से जुड़ें विकारों से मुक्त होकर, शुद्धावस्था को प्राप्त करना एवं मन को प्रसन्न चित अवस्था को प्राप्त कर लेना ही स्थान किया का लक्ष्य है ।

जल स्नान की क्रिया कर्म जनित उष्मा का शमन कर थकान मिटाती है । प्रातःकाल किया गया स्नान आलस्य के परित्याग और उल्लास प्राप्ति का कारण बनता है । जल स्नान की क्रिया के ४ स्वरुप हैं – नित्य स्नान, नैमित्तिक स्नान, काम्य स्नान और गौण स्नान ( जल रहित ) के रुप में किया जाता है । “नित्य स्नान” प्रतिदिन शीतल जल के द्वारा या ठंड के मौसम में गर्म जल से स्नान किया जाता है ।

“नैमित्तिक स्नान” किसी अवसर विशेष पर या किसी घटना से जुड़ी हुई अवस्था में किया जाता है । किसी पर्व श्राद्ध, तर्पण या मृत्यु के अवसर पर किये जाने वाले स्नान को “नैमित्तिक स्नान” कहा जाता है । “काम्य स्नान” किसी फल की प्राप्ति की इच्छा से अथवा फल को प्राप्त हो जाने पर क्रिया जाता हैं । “गौण स्नान” जल रहित अवस्था में शरीर पर भस्म लपेट कर, या सूर्य की धूप में लेटकर, मानस स्नान के रूप में किया जाता है ।

स्नान की प्रक्रिया में शीतल जल द्वारा स्नान करना अति महत्त्वपूर्ण होता है । “जल स्थान” क्रिया के उपरान्त मन तथा शरीर दोनों ऊर्जावान हो जाते हैं । भोजन ग्रहण करने के उपरान्त स्नान करना हानिकारक होता है । यह जठराग्नि को मंद करता है । इसी प्रकार अधिक गर्म जल से स्नान करना अहितकर है । रात्रि के ढाई प्रहर में स्नान करना भी वर्जित है । किन्तु किसी व्रत, पर्व, ग्रहण योग, जन्म-मरण के अवसर पर यह स्नान वर्जित नहीं है ।

तीसरे प्रहर के उत्तरार्ध तथा चौथे प्रहर में सूर्योदय के पहले किया जाने वाला जल स्नान सर्व श्रेष्ठ होता है । योग मार्ग के साधक प्रतिदिन सूर्योदय के पहले “जल स्नान” करना तथा स्नान के बाद “प्राणायाम” करके अपने तन और मन को स्वस्थ रखते हैं । ये साधक रोज प्राणायाम के द्वारा चित्त को शुद्ध एवं निर्विकार अवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ।

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Vaidik Sutra