निःस्वार्थ भाव से परोपकार करें

निःस्वार्थ भाव से परोपकार करें

मनुष्य के जीवन में विपत्तियां, कठिनाईयां, विपरीत परिस्थितियां और कष्ट की घड़ियां आती ही रहती हैं । सुख-दुःख जीवन रथ के दो पहिए हैं । इनसे कभी डरना या घबराना नहीं चाहिए । कठिनाइयां मनुष्य को संघर्ष करने की शक्ति देती हैं और उसकी उन्नति में और आत्मिक विकास में सहायक होती है । (सामवेद-६५३ )

परमात्मा ने हमारे ऊपर उपकार करके हमें हर प्रकार की सुख-सुविधाएं प्रदान की हैं । हमारे चारों तरफ बहुत से लोग दीन-हीन तथा रोगी हैं । हमें अपनी प्रतिभा और क्षमता के अनुसार उनकी मदद करनी चाहिए । विपत्ति तो प्रेम की कसौटी है । परेशानी में पड़ें हुए बंधु-बांधवों, पड़ोसियों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा है, यही हमारे चरित्र का असली मानदंड है ।

पड़ोस में आग लग गयी हो तो क्या हम घर में बैठ सकते हैं ? लोग भूख से तड़पते रहे और हम स्वादिष्ट पकवान खा सकते हैं क्या ? प्रेम से, आदर से, निरभिमानी होकर लोगों की सेवा करने का उल्लास मन में पैदा हो तब समझना चाहिए कि हमारा प्रेम असली है ।

संसार में विभिन्न विचारधारा के लोग रहते हैं और सबके अपने-अपने स्वार्थ होते हैं । ऐसे में आपसी टकराव संभव है, सभी लोग आपके विचारधारा से सहमत नहीं हो सकते इसलिए हमारे सामने वे कठिनाइयां उत्पन्न करते रहेंगे । यही तो वास्तविक जीवन है । कठिनाइयों से जूझते हुए विपरीत परिस्थितियों में भी जो लड़ते हैं विजय उन्हीं को मिलती है । ऐसे ही लोग अपना और सबका भला करते हैं ।

दूसरों की भलाई करने, सेवा करने, परोपकार करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । परोपकार करने से मानसिक संतोष मिलता है । परमात्मा का अनुग्रह भी मिलता है ।

परोपकार से मनुष्य का सम्मान बढ़ता है । सच्चा परोपकारी सदैव प्रसन्न रहता है । निकृष्ट व्यक्ति तो हर जगह धन की ही इच्छा करता है । मध्यम श्रेणी के व्यक्ति धन और सम्मान दोनों चाहते हैं । उत्तम श्रेणी के व्यक्ति सिर्फ सम्मान चाहते हैं । सर्वोच्च श्रेणी के व्यक्ति तो सम्मान भी नहीं चाहते हैं । वे केवल निःस्वार्थ भाव से परोपकार के कार्यों में लगे रहते हैं ।

कहा भी गया है “परोपकाराय सताम् विभूतयः ।” “वृक्ष कबहु नहि फल भखै, नदी न संचे नीर ।
परमार्थ के कारने साधुन, धरा शरीर ।।

वृक्ष अपना फल कभी नहीं खाता, नदी अपने लिए जल का संचय कभी नहीं करती । दूसरों की भलाई के लिए सज्जन पुरुष हमेशा कार्य करते रहते हैं । अगर दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति परोपकार की भावना से काम करते है तब उनकी दुर्बुद्धि समाप्त हो जाती है ।

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Vaidik Sutra